वक़्त जैसा है ब-हर-तौर गुज़र जाना है
आज जो ज़िंदा हक़ीक़त है कल अफ़्साना है
कब जली शम-ए-तमन्ना हमें कुछ याद नहीं
इतना मा'लूम है जल कर उसे बुझ जाना है
मेरी वहशत ने अभी पाँव निकाले भी न थे
दिल-ए-बे-ताब ने ज़िद की मुझे घर जाना है
वा अगर बाब-ए-मुरव्वत को नहीं है होना
आज ही कह दें जो कल आप को फ़रमाना है
गर्दिश-ए-वक़्त का ये जब्र है शायद जो लोग
सुब्ह ज़िंदा हैं मगर शाम को मर जाना है
चश्म-ए-बीना पे लगी तोहमत नज़्ज़ारा यूँही
हद-ए-इदराक तलक तार-ए-नज़र जाना है
ग़र्क़ होना न कहीं ख़्वाब-ए-फ़रामोशी में
मुँह अँधेरे ही तुम्हें 'राही' अगर जाना है
ग़ज़ल
वक़्त जैसा है ब-हर-तौर गुज़र जाना है
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही