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वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए | शाही शायरी
waqt hi kam tha faisle ke liye

ग़ज़ल

वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए

ज़िया मज़कूर

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वक़्त ही कम था फ़ैसले के लिए
वर्ना मैं आता मशवरे के लिए

तुम को अच्छे लगे तो तुम रख लो
फूल तोड़े थे बेचने के लिए

घंटों ख़ामोश रहना पड़ता है
आप के साथ बोलने के लिए

सैकड़ों कुंडियाँ लगा रहा हूँ
चंद बटनों को खोलने के लिए

एक दीवार बाग़ से पहले
इक दुपट्टा खुले गले के लिए

तर्क अपनी फ़लाह कर दी है
और क्या हो मुआशरे के लिए

लोग आयात पढ़ के सोते हैं
आप के ख़्वाब देखने के लिए

अब मैं रस्ते में लेट जाऊँ क्या
जाने वालों को रोकने के लिए