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वक़्त-ए-आख़िर जो बालीं पर आजाइयो | शाही शायरी
waqt-e-aKHir jo baalin par aajaiyo

ग़ज़ल

वक़्त-ए-आख़िर जो बालीं पर आजाइयो

अलीम उस्मानी

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वक़्त-ए-आख़िर जो बालीं पर आजाइयो
याद रखियो बहुत नेकियाँ पाइयो

मेरे लाएक़ जो हो मुझ को बतलाइयो
जान हाज़िर है कुछ और फ़रमाइयो

एक डर मुझ को अर्ज़-ए-तमन्ना में है
तुम पसीने पसीने न हो जाइयो

हम दुआ अम्न की माँगते हैं मगर
आप भी अपनी पायल को समझाईयो

हम को भी कुछ लकीरों की पहचान है
आप अपनी हथेली इधर लाइयो

हाल-ए-दिल हम सुनाते हैं हँसते हो तुम
हम नहीं बोलते तुम से अब जाइयो

मीर के रंग में लिख के ग़ज़लें 'अलीम'
धीरे धीरे न तुम मीर बन जाइयो