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वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे | शाही शायरी
waqt abhi paida na hua tha tum bhi raaz mein the

ग़ज़ल

वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे

साक़ी फ़ारुक़ी

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वक़्त अभी पैदा न हुआ था तुम भी राज़ में थे
एक शिकस्ता सन्नाटा था हम आग़ाज़ में थे

उन से प्यार किया जिन पर ख़ामोशी नाज़िल की
उन पर ज़ुल्म किया जो बंद अपनी आवाज़ में थे

हर क़ैदी पर आज़ादी की हद जारी कर दी
होंटों का एजाज़ हुए जो नग़्मे साज़ में थे

हब्स था कोई सुब्ह फ़रोज़ाँ होने वाली थी
शाम क़दम-बोसी पर थी साए परवाज़ में थे

जिस ने ख़ून में ग़ुस्ल किया और आग में रक़्स किया
हैफ़ कि सारे हंगामे उस के एज़ाज़ में थे