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वक़्त अब सर पे वो आया है कि सर याद नहीं | शाही शायरी
waqt ab sar pe wo aaya hai ki sar yaad nahin

ग़ज़ल

वक़्त अब सर पे वो आया है कि सर याद नहीं

अब्दुल मलिक सोज़

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वक़्त अब सर पे वो आया है कि सर याद नहीं
तेरे दीवानों को भी अब तिरा दर याद नहीं

हाए वो शब जो तिरे वादा-ए-शब में गुज़री
हाए वो शब है कि जिस शब की सहर याद नहीं

ज़िंदगी कैसे कटी दावर-ए-महशर ये न पूछ
वो सफ़र याद तो है रख़्त-ए-सफ़र याद नहीं

मेरे आ'माल पे जाए तो ये समझूँगा तुझे
याद है दामन-ए-तर दीदा-ए-तर याद नहीं

प्यार से अब भी वो तकते हैं मुझे पर उन को
जिस ने दिल लूट लिया था वो नज़र याद नहीं

उम्र-भर थाम के उस शोख़ का दामन रोए
'सोज़' क्या उस पे हुआ उस का असर याद नहीं