वक़्त अब सर पे वो आया है कि सर याद नहीं
तेरे दीवानों को भी अब तिरा दर याद नहीं
हाए वो शब जो तिरे वादा-ए-शब में गुज़री
हाए वो शब है कि जिस शब की सहर याद नहीं
ज़िंदगी कैसे कटी दावर-ए-महशर ये न पूछ
वो सफ़र याद तो है रख़्त-ए-सफ़र याद नहीं
मेरे आ'माल पे जाए तो ये समझूँगा तुझे
याद है दामन-ए-तर दीदा-ए-तर याद नहीं
प्यार से अब भी वो तकते हैं मुझे पर उन को
जिस ने दिल लूट लिया था वो नज़र याद नहीं
उम्र-भर थाम के उस शोख़ का दामन रोए
'सोज़' क्या उस पे हुआ उस का असर याद नहीं
ग़ज़ल
वक़्त अब सर पे वो आया है कि सर याद नहीं
अब्दुल मलिक सोज़