वकीलों की वकालत कर रही हूँ
समझती हूँ जहालत कर रही हूँ
मुझे मा'लूम है अंजाम लेकिन
ज़माने से शिकायत कर रही हूँ
मैं क़ैदी हूँ या क़ाइद हूँ तुझे क्या
मैं हर सूरत क़यादत कर रही हूँ
कोई समझे मुझे कैसा भी अब तो
ख़ुदा के घर इबादत कर रही हूँ
जहाँ ता'मीर-ए-आदम हो रही थी
वहाँ अब फिर शरारत कर रही हूँ
सुना था जो वहाँ पर मैं ने 'कौसर'
वो कहने की जसारत कर रही हूँ
ग़ज़ल
वकीलों की वकालत कर रही हूँ
सय्यदा कौसर मनव्वर शरक़पुरी