EN اردو
वजूद अब मिरा ला-फ़ना हो गया | शाही शायरी
wajud ab mera la-fana ho gaya

ग़ज़ल

वजूद अब मिरा ला-फ़ना हो गया

साहिर देहल्वी

;

वजूद अब मिरा ला-फ़ना हो गया
फ़ना हो के जुज़्व-ए-बक़ा हो गया

मुक़द्दस है आलम में ज़ौक़-ए-फ़ना
कि उक़्दा दो-आलम का वा हो गया

हुआ आश्कारा अदम से वजूद
लिखा था जो तक़दीर का हो गया

न हम थे न हंगामा-ए-काएनात
खुली आँख और ख़्वाब सा हो गया

हक़ीक़त हुआ रफ़्ता रफ़्ता मजाज़
रसा ताले-ए-ना-रसा हो गया

तिरा आस्ताना हरम हो कि दैर
मुसावात-ए-शाह-ओ-गदा हो गया

न कुछ होश अपना न है कुछ ख़बर
ख़ुदा जाने 'साहिर' को क्या हो गया