वैसे तुम अच्छी लड़की हो
लेकिन मेरी क्या लगती हो
मैं अपने दिल की कहता हूँ
तुम अपने दिल की सुनती हो
झीलों जैसी आँखों वाली
तुम बेहद गहरी लगती हो
मौज-ए-बदन में रंग हैं इतने
लगता है रंगों से बनती हो
फूल हुए हैं ऐसे रौशन
जैसे इन में तुम हँसती हो
जंगल हैं और बाग़ हैं मुझ में
तुम इन से मिलती-जुलती हो
यूँ तो बशर-ज़ादी हो लेकिन
ख़ुशबू जैसी क्यूँ लगती हो
अक्सर सोचता रहता हूँ मैं
ख़ल्वत में तुम क्या करती हो
वो क़र्या आबाद हमेशा
जिस क़र्ये में तुम रहती हो
ग़ज़ल
वैसे तुम अच्छी लड़की हो
कामी शाह