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वैसे तो थे यार बहुत पर किसी ने मुझे पहचाना था | शाही शायरी
waise to the yar bahut par kisi ne mujhe pahchana tha

ग़ज़ल

वैसे तो थे यार बहुत पर किसी ने मुझे पहचाना था

यूसुफ़ तक़ी

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वैसे तो थे यार बहुत पर किसी ने मुझे पहचाना था
तुम ने बस इक समझा मुझ को तुम ने बस इक जाना था

तुम बिन सजनी जीवन अपना सूना आँगन टूटा सपना
दिल को तुम से राह थी उतनी हम ने कब ये जाना था

मैं तो पापी मेरी ख़ातिर अपना सब कुछ दान किया क्यूँ
दुनिया जैसी प्यारी बस्ती ऐसे छोड़ के जाना था

मौत और दिल पर किसी को क़ाबू आए तो अपनी मर्ज़ी आए
मेरी ख़ातिर जान गँवाना यारो एक बहाना था

मैं ने यारो तुम से सुना था वक़्त का मरहम भर दे हर ग़म
अगली पिछली सारी बातें मुझ को भूल ही जाना था

भोर का बिछड़ा साँझ को लौटा अपने किए पर पहरों रोया
दिल की बीना टूट गई थी फिर भी तुम को गाना था