वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर
हम भागते थे ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर देख कर
जब तक न ख़ाक हो जिए हासिल नहीं कमाल
ये बात खुल गई हमें इक्सीर देख कर
उज़्र-ए-गुनाह दावर-ए-महशर से क्यूँ करूँ
ग़म मिट गया है नामा-ए-तक़दीर देख कर
हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं
गिरता हूँ आब-ए-ख़ंजर-ओ-शमशीर देख कर
'आरिफ़' छुपा तो हम से वले हम तो पा गए
जो बात है ये रंग की तग़ईर देख कर
ग़ज़ल
वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़