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वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर | शाही शायरी
wahshat mein yaad aae hai zanjir dekh kar

ग़ज़ल

वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

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वहशत में याद आए है ज़ंजीर देख कर
हम भागते थे ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर देख कर

जब तक न ख़ाक हो जिए हासिल नहीं कमाल
ये बात खुल गई हमें इक्सीर देख कर

उज़्र-ए-गुनाह दावर-ए-महशर से क्यूँ करूँ
ग़म मिट गया है नामा-ए-तक़दीर देख कर

हूँ तिश्ना-काम-ए-दश्त-ए-शहादत ज़ि-बस कि मैं
गिरता हूँ आब-ए-ख़ंजर-ओ-शमशीर देख कर

'आरिफ़' छुपा तो हम से वले हम तो पा गए
जो बात है ये रंग की तग़ईर देख कर