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वहशत को मिरी देख कि मजनूँ ने कहा बस | शाही शायरी
wahshat ko meri dekh ki majnun ne kaha bas

ग़ज़ल

वहशत को मिरी देख कि मजनूँ ने कहा बस

सिराज औरंगाबादी

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वहशत को मिरी देख कि मजनूँ ने कहा बस
मजनूँ नीं तो क्या दामन-ए-हामूँ ने कहा बस

हर दर्द नीं जियूँ क़ुत्ब मुझे देख के साबित
क़ुर्बान मिरे गिर्द हो गर्दूं ने कहा बस

गुल-रू की जुदाई में मिरे दाग़-ए-जिगर देख
गुलशन में हर एक लाला-ए-पुर-ख़ूँ ने कहा बस

है दाम-ए-परी बस-कि मिरी आह का जादू
बे-बाक हो उस चश्म-ए-पुर-अफ़्सूँ ने कहा बस

अहवाल-ए-'सिराज' आतिश-ए-हिज्राँ में तिरी देख
दिल सोज़ हो परवाना-ऐ-महज़ूँ ने कहा बस