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वही सर है वही सौदा वही वहशत है मियाँ | शाही शायरी
wahi sar hai wahi sauda wahi wahshat hai miyan

ग़ज़ल

वही सर है वही सौदा वही वहशत है मियाँ

कामरान नदीम

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वही सर है वही सौदा वही वहशत है मियाँ
अब भी आ जाओ कि दिल की वही ख़ल्वत है मियाँ

वुसअ'त-ए-दीद सिमटने ही नहीं पाती है
चश्म-ए-आहू से हमें आज भी निस्बत है मियाँ

उम्र जब हिज्र-ए-मुसलसल की मसाफ़त में कटी
ये भी कट जाएगी इक दिन शब-ए-फ़ुर्क़त है मियाँ

कू-ए-दिलदार में बाक़ी नहीं शोरीदा-सराँ
शहर दरयूज़ा-गर-ए-कूचा-ए-शोहरत है मियाँ

क्यूँ न हम मौजा-ए-हैरत से लिपट कर सोवें
वस्ल अब तेरे लिए भी तो मशक़्क़त है मियाँ

तुम ने क्या देखे नहीं शम्स-ओ-क़मर नेज़ों पर
जश्न-ए-ज़ुल्मात पे अब कौन सी हैरत है मियाँ

फ़र्क़-ए-ताबाँ है तिरा मतला-ए-ख़ुर्शीद मगर
तेरे काकुल में छुपी शाम-ए-क़यामत है मियाँ

दश्त-ए-हस्ती में बहुत आबला-पाई है 'नदीम'
सरहद-ए-मर्ग-ए-मुसलसल तो अज़िय्यत है मियाँ