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वही हमेशा का आलम है क्या किया जाए | शाही शायरी
wahi hamesha ka aalam hai kya kiya jae

ग़ज़ल

वही हमेशा का आलम है क्या किया जाए

निदा फ़ाज़ली

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वही हमेशा का आलम है क्या किया जाए
जहाँ से देखिए कुछ कम है क्या किया जाए

गुज़रते वक़्त ने धुँदला दिए सभी चेहरे
ख़ुशी ख़ुशी है न ग़म ग़म है क्या किया जाए

भटक रहा हूँ लिए तिश्नगी समुंदर की
मगर नसीब में शबनम है क्या किया जाए

मिली है ज़ख़्मों की सौग़ात जिस की महफ़िल से
उसी के हाथ में मरहम है क्या किया जाए

वो एक शख़्स जो कल तक था दूसरों से ख़फ़ा
अब अपने आप से बरहम है क्या किया जाए