वही गुमाँ है जो उस मेहरबाँ से पहले था
वहीं से फिर ये सफ़र है जहाँ से पहले था
है इस निगह का करिश्मा कि मेरे दिल का हुनर
मैं उस के ग़म का शनासा बयाँ से पहले था
वो एक लम्हा मुझे क्यूँ सता रहा है कि जो
नहीं के बा'द मगर उस की हाँ से पहले था
मैं ख़ुश हूँ हम-सफ़रों ने कि मुझ से छीन लिया
ग़ुरूर-ए-रहरवी जो कारवाँ से पहले था
वही इन आँखों ने देखा जो देखना था इन्हें
मैं ख़ुश-गुमाँ करम-ए-दोस्ताँ से पहले था
फ़ुग़ाँ कि तोड़ सका मैं न बे-कसी का तिलिस्म
मिरा नसीब मिरी दास्ताँ से पहले था
ग़ज़ल
वही गुमाँ है जो उस मेहरबाँ से पहले था
अकबर अली खान अर्शी जादह