वही दश्त-ए-बला है और मैं हूँ
ज़माने की हवा है और मैं हूँ
तुझे ऐ हम-सफ़र कैसे सँभालूँ
पहाड़ी रास्ता है और मैं हूँ
सुकूत-ए-कोह है और साया-ए-दर
सदा-ए-मा-सिवा है और मैं हूँ
मगर शाख़ों से पत्ते गिर रहे हैं
वही आब-ओ-हवा है और मैं हूँ
ये सारी बर्फ़ गिरने दो मुझी पर
तपिश सब से सिवा है और मैं हूँ
कई दिन से नशेमन ख़ाक-ए-दिल का
सर-ए-शाख़-ए-हवा है और मैं हूँ
पहाड़ों पर कहीं बारिश हुई है
ज़मीं महव-ए-दुआ है और मैं हूँ
मुझे भी कुछ न कुछ करना पड़ेगा
ज़माना सर-फिरा है और मैं हूँ
ग़ज़ल
वही दश्त-ए-बला है और मैं हूँ
मज़हर इमाम