वफ़ाओं के इरादे वुसअ'त-ए-मंज़िल में रहते हैं
पस-ओ-पेश-ए-सितम पेश-ओ-पस-ए-महमिल में रहते हैं
नुक़ूश-ए-रह-रव-ए-मंज़िल रह-ए-मंज़िल में रहते हैं
चकोरों के निशान-ए-ग़म मह-ए-कामिल में रहते हैं
ग़म-ए-इश्क़-ए-हक़ीक़ी बे-असर हो जाए ना-मुम्किन
नुमायाँ लग़्ज़िश-ओ-रा'शा कफ़-ए-क़ातिल में रहते हैं
जो अरमाँ लब पे आ के मोजिब-ए-क़त्ल-ए-ग़रीबाँ हैं
वही अरमान पोशीदा दिल-ए-क़ातिल में रहते हैं
हज़ारों कश्तियाँ उस पार हो जाती हैं साहिल के
हमारे वास्ते तूफ़ाँ छुपे साहिल में रहते हैं
हमेशा ज़िंदगी कटती रही तारीक रातों में
न जाने ज्वार-भाटे क्यूँ हमारे दिल में रहते हैं
ज़माना के हवादिस से न डर हरगिज़ मुक़ाबिल आ
जो अहल-ए-दिल हैं दुनिया में वही मुश्किल में रहते हैं
मय-ए-रंगीं सुरूद-ए-शोख़ रक़्स-ए-दिल-रुबा शब को
सहर को 'सोज़' फ़ुर्क़त के निशाँ महफ़िल में रहते हैं
ग़ज़ल
वफ़ाओं के इरादे वुसअ'त-ए-मंज़िल में रहते हैं
सोज़ बरेलवी