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वफ़ा की शम्अ' जलाओ कि हम ग़ज़ल कह लें | शाही शायरी
wafa ki shama jalao ki hum ghazal kah len

ग़ज़ल

वफ़ा की शम्अ' जलाओ कि हम ग़ज़ल कह लें

मर्ग़ूब असर फ़ातमी

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वफ़ा की शम्अ' जलाओ कि हम ग़ज़ल कह लें
उदास रात है आओ कि हम ग़ज़ल कह लें

किसी के साथ गुज़ारे हुए हसीं लम्हो
तुम आज याद तो आओ कि हम ग़ज़ल कह लें

बिखेरे जाओ फ़ज़ाओं में आज तुम नग़्मे
सुनाओ गीत सुनाओ कि हम ग़ज़ल कह लें

तुम्हारे हुस्न का चर्चा है चाँद-तारों में
कभी ज़मीन पे आओ कि हम ग़ज़ल कह लें

किसी की याद की मशअ'ल जला जला के 'असर'
अँधेरा ग़म का मिटाओ कि हम ग़ज़ल कह लें