वफ़ा की शान वो लेकिन कभी मिरे न हुए
है मेरी जान वो लेकिन कभी मिरे न हुए
उन्हीं का ज़िक्र ग़ज़ल भी वही फ़साना भी
सुख़न की आन वो लेकिन कभी मिरे न हुए
नशा है उन की सदा का कि धड़कनें मेरी
रहा गुमान वो लेकिन कभी मिरे न हुए
गुलों में रंग उन्हीं से महक महक उन से
चमन की शान वो लेकिन कभी मिरे न हुए
वही हैं शम्स ओ क़मर बहर ओ बर मिरे 'मीता'
हैं इक जहान वो लेकिन कभी मिरे न हुए
ग़ज़ल
वफ़ा की शान वो लेकिन कभी मिरे न हुए
अमीता परसुराम 'मीता'