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वफ़ा की राह में किस का ये नक़्श-ए-पा निकला | शाही शायरी
wafa ki rah mein kis ka ye naqsh-e-pa nikla

ग़ज़ल

वफ़ा की राह में किस का ये नक़्श-ए-पा निकला

महमूदुल हसन

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वफ़ा की राह में किस का ये नक़्श-ए-पा निकला
जबीन-ए-शौक़ तिरा आज हौसला निकला

सुकूत-ए-आख़िर-ए-शब और फ़सुर्दगी दिल की
बुझा बुझा सा तिरी याद का दिया निकला

कमी थी कुछ तिरी बज़्म-ए-तरब में क्या साक़ी
कि जुरआ जुरआ भला किस का हौसला निकला

कभी बरसते थे लाल-ओ-गुहर इसी घर में
इसी मकाँ से मगर कासा-ए-गदा निकला

कठिन थी राह-ए-वफ़ा दूर मंज़िल-ए-जानाँ
क़दम बढ़ाए तो लम्हों का फ़ासला निकला

मिरा फ़साना तो हर अहद का फ़साना है
कि लफ़्ज़ लफ़्ज़ मोहब्बत का माजरा निकला