वफ़ा-केश-ओ-वफ़ा-ना-आश्ना क्या
मोहब्बत में बलाओं का गिला क्या
यही दो एक नग़्मे वो भी बे-सौत
शिकस्ता-साज़ हूँ मेरी सदा क्या
न देखें वो हमारे दिल की मय्यत
दिल-ए-मरहूम का अब ख़ूँ-बहा क्या
अदावत बिजलियों की मोल ले ली
चमन में दो-घड़ी को मैं हँसा क्या
ये अक़्ल-ओ-आगही के ख़ाम दा'वे
कभी सोचा भी ये तू ने कि था क्या
फ़क़त इक ज़ेर-ए-लब मुबहम तबस्सुम
हमारी आरज़ू क्या मुद्दआ' क्या
वफ़ाएँ ऐन ईमान-ए-मोहब्बत
मोहब्बत में वफ़ाओं का सिला क्या
शनावर के लिए गिर्दाब साहिल
ग़म-ए-बे-चारगी-ए-नाख़ुदा क्या
तिरा परतव है जिस को हुस्न कह दें
मुक़ाबिल हो तिरे है दूसरा क्या
मोहब्बत की ये वो मंज़िल है जिस में
दवा-ए-दर्द-ओ-दर्द-ए-ला-दवा क्या
ज़माने-भर ने नज़रें फेर ली हैं
हुए हो तुम बस इक हम से ख़फ़ा क्या
मुझे सारी ख़ुदाई मिल गई है
दिया है तुम ने दर्द-ए-ला-दवा क्या
जो सर-मस्ती है इन आँखों में पिन्हाँ
'जलील' इस दुख़्त-ए-रज़ में वो मज़ा क्या

ग़ज़ल
वफ़ा-केश-ओ-वफ़ा-ना-आश्ना क्या
जलील शेरकोटी