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वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ | शाही शायरी
wafa ke bab mein kar-e-suKHan tamam hua

ग़ज़ल

वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ

इस्लाम उज़्मा

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वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ
चलो कि रिश्ता-ए-रूह-ओ-बदन तमाम हुआ

किताब-ए-हिज्र-ए-मुसलसल खुली हमारे लिए
कि बाब-ए-वस्ल सर-ए-अंजुमन तमाम हुआ

अजीब धूप सर-ए-सेहन-ए-तन उतर आई
मिज़ाज तुर्श हुआ बाँकपन तमाम हुआ

बसारतों को समेटो बुझा लो आँखों को
बयान-ए-कर्बल-ए-सर्व-ओ-समन तमाम हुआ

रफ़ू-गरी का हुनर सीख तो लिया 'अज़्मी'
नुमूद-ए-फ़न में मगर पैरहन तमाम हुआ