वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ
चलो कि रिश्ता-ए-रूह-ओ-बदन तमाम हुआ
किताब-ए-हिज्र-ए-मुसलसल खुली हमारे लिए
कि बाब-ए-वस्ल सर-ए-अंजुमन तमाम हुआ
अजीब धूप सर-ए-सेहन-ए-तन उतर आई
मिज़ाज तुर्श हुआ बाँकपन तमाम हुआ
बसारतों को समेटो बुझा लो आँखों को
बयान-ए-कर्बल-ए-सर्व-ओ-समन तमाम हुआ
रफ़ू-गरी का हुनर सीख तो लिया 'अज़्मी'
नुमूद-ए-फ़न में मगर पैरहन तमाम हुआ

ग़ज़ल
वफ़ा के बाब में कार-ए-सुख़न तमाम हुआ
इस्लाम उज़्मा