वफ़ा करते उसे देखा नहीं है
मगर वो बेवफ़ा लगता नहीं है
दिल-ए-बर्बाद तुझ को क्या हुआ है
सराए में कोई बस्ता नहीं है
उसे पत्थर बना देती है दुनिया
जो दरिया है मगर बहता नहीं है
ये दुनिया फिर नुमायाँ हो रही है
अंधेरा उम्र भर रहता नहीं है
मिरा हमदर्द है आईना 'नाज़िम'
मैं रोता हूँ तो ये हँसता नहीं है
ग़ज़ल
वफ़ा करते उसे देखा नहीं है
नाज़िम नक़वी