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वफ़ा का ज़िक्र नहीं है करम की बात नहीं | शाही शायरी
wafa ka zikr nahin hai karam ki baat nahin

ग़ज़ल

वफ़ा का ज़िक्र नहीं है करम की बात नहीं

कविता किरन

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वफ़ा का ज़िक्र नहीं है करम की बात नहीं
तिरे सुलूक में फिर भी सितम की बात नहीं

तुझे मैं चाहूँ ये मेरा नसीब है लेकिन
अगर तू मुझ को न चाहे तो ग़म की बात नहीं

हसीन शाम जो गुज़री वो यादगार बनी
ये बात वैसे भी सच है भरम की बात नहीं

हर एक बात का मेरी ख़ुदा रहेगा गवाह
हर इक जनम की है ये इक जनम की बात नहीं

ग़ज़ल वो कैसी वो नग़्मा ही क्या रहेगा 'किरन'
तिरे कलाम में जब तक सनम की बात नहीं