वफ़ा का शौक़ ये किस इंतिहा में ले आया
कुछ और दाग़ मैं अपनी क़बा में ले आया
मिरे मिज़ाज मिरे हौसले की बात न कर
मैं ख़ुद चराग़ जला कर हवा में ले आया
धनक लिबास घटा ज़ुल्फ़ धूप धूप बदन
तुम्हारा मिलना मुझे किस फ़ज़ा में ले आया
वो एक अश्क जिसे राएगाँ समझते थे
क़ुबूलियत का शरफ़ वो दुआ में ले आया
फ़लक को छोड़ के हम दर-ब-दर न थे 'शहबाज़'
ज़मीं से टूटना हम को ख़ला में ले आया
ग़ज़ल
वफ़ा का शौक़ ये किस इंतिहा में ले आया
शहबाज़ ख़्वाजा