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वाक़िफ़ नहीं तो उस के लबों को कँवल न लिख | शाही शायरी
waqif nahin to uske labon ko kanwal na likh

ग़ज़ल

वाक़िफ़ नहीं तो उस के लबों को कँवल न लिख

सहबा अख़्तर

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वाक़िफ़ नहीं तो उस के लबों को कँवल न लिख
अल्फ़ाज़ को ख़िज़ाब लगा कर ग़ज़ल न लिख

मोमिन के साथ सिर्फ़ ख़ुदा है सनम नहीं
उस बेकसी को उक़्दा-ए-मुश्किल का हल न लिख

लफ़्ज़ों में कब सिमटता है वो सेहर-ए-बे-कराँ
शे'रों को हुस्न-ए-दोस्त का नेमुल-बदल न लिख

इंसान आप अपनी तबाही को कम नहीं
दुनिया की इस तबाही को कार-ए-अजल न लिख

'सहबा' के साथ साथ न चल साया-ए-ज़मीर
ऐ मेरे हम-नशीं मिरी फ़र्द-ए-अमल न लिख