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वाँ ज़ेरकी पसंद न इदराक चाहिए | शाही शायरी
wan zerki pasand na idrak chahiye

ग़ज़ल

वाँ ज़ेरकी पसंद न इदराक चाहिए

इस्माइल मेरठी

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वाँ ज़ेरकी पसंद न इदराक चाहिए
इज्ज़-ओ-नियाज़-ए-दीदा-ए-नमनाक चाहिए

आईना बन कि शाहिद-ओ-मशहूद एक है
उस रू-ए-पाक को नज़र-ए-पाक चाहिए

सैर-ओ-सुलूक-ए-जाँ नहीं बे-जज़्बा-ए-निहाँ
इस राह में ये तौसन-ए-चालाक चाहिए

गुज़रे उम्मीद-ओ-बीम से ये हौसला किसे
रिंद-ए-ख़राब-ओ-आरिफ़-ए-बेबाक चाहिए

हर चश्मा आइना है रुख़-ए-आफ़्ताब का
हाँ सतह-ए-आब बे-ख़स-ओ-ख़ाशाक चाहिए

नश-ओ-नुमा-ए-सब्ज़ा-ओ-गुल में नहीं दरंग
अब्र-ए-करम को तिश्नगी-ए-ख़ाक चाहिए

इस्लाह-ए-हाल-ए-आशिक़-ए-दिल-ख़स्ता है ज़रूर
माशूक़ जौर-पेशा-ओ-सफ़्फ़ाक चाहिए

जो ऐन-ए-ना-ए-नोश हो उस बादा-नोश को
जाम-ओ-सुबू न ख़ुम-कद-ओ-ताक चाहिए

सय्याद के असर पे रवाँ हो तो सैद है
वो सैद ही नहीं जिसे फ़ितराक चाहिए