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वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार | शाही शायरी
wan usko haul-e-dil hai to yan main hun sharm-sar

ग़ज़ल

वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार

मिर्ज़ा ग़ालिब

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वाँ उस को हौल-ए-दिल है तो याँ मैं हूँ शर्म-सार
यानी ये मेरी आह की तासीर से न हो

अपने को देखता नहीं ज़ौक़-ए-सितम को देख
आईना ता-कि दीदा-ए-नख़चीर से न हो