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वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह | शाही शायरी
wan jo kuchh kabe mein asrar hai allah allah

ग़ज़ल

वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह

वलीउल्लाह मुहिब

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वाँ जो कुछ का'बे में असरार है अल्लाह अल्लाह
सो मिरे बुत में नुमूदार है अल्लाह अल्लाह

दैर में का'बे में मयख़ाने में और मस्जिद में
जल्वा-गर सब में मिरा यार है अल्लाह अल्लाह

उस के हर नक़्श-ए-क़दम पर करें आशिक़ सज्दा
बुत-ए-काफ़िर की वो रफ़्तार है अल्लाह अल्लाह

हुस्न के उस की किया तूर-ए-तजल्ली दिल को
हाए क्या जल्वा-ए-दीदार है अल्लाह अल्लाह

न ग़रज़ कुफ़्र से न दीन से हम को मतलब
यार से अपने सरोकार है अल्लाह अल्लाह

शैख़ है तुझ को ही इंकार सनम मेरे से
वर्ना हर शख़्स को इक़रार है अल्लाह अल्लाह

ख़ौफ़ क्या दग़दग़ा-ए-हश्र से है मुझ को 'मुहिब'
पीर-ए-मन हैदर-ए-कर्रार है अल्लाह अल्लाह