वाइ'ज़ मिलेगी ख़ुल्द में कब इस क़दर शराब
पानी के बदले पीते हैं ऐ बे-ख़बर शराब
आमद में उस की मस्त हुए कुछ ख़बर नहीं
साक़ी है कौन जाम कहाँ और किधर शराब
उस क़ुल्ज़ुम-ए-गुनाह में डूबा हुआ हूँ मैं
जिस में है एक मौजा-ए-दामान-ए-तर शराब
मस्ती में उन को लग गई लौ और ग़ैर की
देनी शब-ए-विसाल न थी इस क़दर शराब
इक़रार-ए-वस्ल और वो मस्त-ए-ग़ुरूर-ए-नाज़
आया है पी के तू कहीं ऐ नामा-बर शराब
'सालिक' मिले जो बज़्म में उस की तो लुत्फ़ है
वर्ना पिया ही करते हैं हम अपने घर शराब
ग़ज़ल
वाइ'ज़ मिलेगी ख़ुल्द में कब इस क़दर शराब
क़ुर्बान अली सालिक बेग