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वाइज़ बुतों के आगे न फ़ुरक़ाँ निकालिए | शाही शायरी
waiz buton ke aage na furqan nikaliye

ग़ज़ल

वाइज़ बुतों के आगे न फ़ुरक़ाँ निकालिए

मज़ाक़ बदायुनी

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वाइज़ बुतों के आगे न फ़ुरक़ाँ निकालिए
सूरत से उन की मअ'नी-ए-क़ुरआँ निकालिए

है दिल में मुद्दआ कि एवज़ जाँ निकालिए
जी खोइए प जी का न अरमाँ निकालिए

इस दिल में ऐसे तीर हैं कितने ही बे-निशाँ
आप-अपना देख-भाल के पैकाँ निकालिए

है जी में रखिए आह के शोला पे लख़्त-ए-दिल
परियों के सर पे तख़्त-ए-सुलैमाँ निकालिए

ज़ख़्म और आए लेक मिरी जाँ ख़लिश न जाए
दिल चीरिए जिगर से न पैकाँ निकालिए

दिखलाइए न काविश-ए-पैकाँ का इंतिज़ार
नश्तर से जल्द दीदा-ए-हैराँ निकालिए

रहिए 'मज़ाक़' हश्र के मैदाँ में सुर्ख़-रू
मज़मून-ए-रू-ए-शाह-ए-शहीदाँ निकालिए