वाइज़ बुतों के आगे न फ़ुरक़ाँ निकालिए
सूरत से उन की मअ'नी-ए-क़ुरआँ निकालिए
है दिल में मुद्दआ कि एवज़ जाँ निकालिए
जी खोइए प जी का न अरमाँ निकालिए
इस दिल में ऐसे तीर हैं कितने ही बे-निशाँ
आप-अपना देख-भाल के पैकाँ निकालिए
है जी में रखिए आह के शोला पे लख़्त-ए-दिल
परियों के सर पे तख़्त-ए-सुलैमाँ निकालिए
ज़ख़्म और आए लेक मिरी जाँ ख़लिश न जाए
दिल चीरिए जिगर से न पैकाँ निकालिए
दिखलाइए न काविश-ए-पैकाँ का इंतिज़ार
नश्तर से जल्द दीदा-ए-हैराँ निकालिए
रहिए 'मज़ाक़' हश्र के मैदाँ में सुर्ख़-रू
मज़मून-ए-रू-ए-शाह-ए-शहीदाँ निकालिए

ग़ज़ल
वाइज़ बुतों के आगे न फ़ुरक़ाँ निकालिए
मज़ाक़ बदायुनी