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वाह क्या ख़ूब क़द्र की दिल की | शाही शायरी
wah kya KHub qadr ki dil ki

ग़ज़ल

वाह क्या ख़ूब क़द्र की दिल की

महशर लखनवी

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वाह क्या ख़ूब क़द्र की दिल की
न सुनी तुम ने एक भी दिल की

ज़ब्त-ए-फ़रियाद में कटी शब-ए-हिज्र
शुक्र है बात रह गई दिल की

मस्त हैं नश्शा-ए-जवानी से
क्या ख़बर आप को किसी दिल की

बढ़ता जाता है तूल-ए-गेसू-ए-यार
घटती जाती है ज़िंदगी दिल की

वो ज़माना अब आया है 'महशर'
है हर इक बज़्म में हँसी दिल की