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वाह क्या हुस्न कैसा जोबन है | शाही शायरी
wah kya husn kaisa joban hai

ग़ज़ल

वाह क्या हुस्न कैसा जोबन है

मर्दान अली खां राना

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वाह क्या हुस्न कैसा जोबन है
कैसी अबरू हैं कैसी चितवन है

जिस को देखो वो नूर का बुक़अ'
ये परिस्तान है कि लंदन है

अबस उन को मसीह कहते हैं
मार रखने का उन में लच्छन है

हुस्न दिखला रहा है जल्वा-ए-हक़
रू-ए-ताबाँ से साफ़ रौशन है

रस्म उल्टी है ख़ूब-रूयों में
दोस्त जिस के बनो वो दुश्मन है

हाल उश्शाक़ को बताते हैं
और अभी ख़ैर से लड़कपन है