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उठो यहाँ से कहीं और जा के सो जाओ | शाही शायरी
uTho yahan se kahin aur ja ke so jao

ग़ज़ल

उठो यहाँ से कहीं और जा के सो जाओ

सुरेन्द्र पंडित सोज़

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उठो यहाँ से कहीं और जा के सो जाओ
यहाँ के शोर से भागो कहीं भी खो जाओ

लहू लहू न करो ज़िंदगी के चेहरे को
सितमगरों की नवाज़िश से दूर हो जाओ

कहाँ फिरोगे ग़ुबार-ए-सफ़र को साथ लिए
मता-ए-दर्द को दामन में ले के सो जाओ

करम की भीक कहाँ क़ातिलों की बस्ती में
बदन का ख़ोल उठाओ लहद में सो जाओ

ये साया-दार शजर तो फ़रेब देते हैं
ख़िज़ाँ के साथ रहो आँधियों के हो जाओ

ये ज़िंदगी तो फ़रेबों का आइना ठहरी
अब अपनी खोज में भटको फ़रार हो जाओ