उठो अब देर होती है वहाँ चल कर सँवर जाना
यक़ीनी है घड़ी दो में मरीज़-ए-ग़म का मर जाना
मुझे डर है गुलों के बोझ से मरक़द न दब जाए
उन्हें आदत है जब आना ज़रूर एहसान धर जाना
हबाब आ सामने सब वलवले जोश-ए-जवानी के
ग़ज़ब था क़ुल्ज़ुम-ए-उम्मीद का चढ़ कर उतर जाना
यहाँ जुज़ कश्ती-ए-मौज-ए-बला कुछ भी न पाओगे
इसी के आसरे दरिया-ए-हस्ती से उतर जाना
मबादा फिर असीर-ए-दाम-ए-अक़्ल-ओ-होश हो जाऊँ
जुनूँ का इस तरह अच्छा नहीं हद से गुज़र जाना
'हफ़ीज़' आग़ाज़ से अंजाम तक रहज़न ने पहुँचाया
उसी को हम-सफ़र पाया उसी को हम-सफ़र जाना
ग़ज़ल
उठो अब देर होती है वहाँ चल कर सँवर जाना
हफ़ीज़ जालंधरी