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उठाओ संग कि हम में सनक बहुत है अभी | शाही शायरी
uThao sang ki hum mein sanak bahut hai abhi

ग़ज़ल

उठाओ संग कि हम में सनक बहुत है अभी

अशफ़ाक़ अंजुम

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उठाओ संग कि हम में सनक बहुत है अभी
हमारे गर्म लहू में नमक बहुत है अभी

उतर रही है अगर चाँदनी उतरने दे
महकती ज़ुल्फ़ में तेरी चमक बहुत है अभी

ये कल किसी नए मौसम की फ़स्ल काटेंगे
सरों में अहल-ए-जुनूँ के ठनक बहुत है अभी

उसे ख़बर नहीं सूरज भी डूब जाता है
हसीं लिबास पे नाज़ाँ धनक बहुत है अभी

हमारे पहले ही मौसम ने हम को तोड़ दिया
मगर तुम्हारे बदन में लचक बहुत है अभी

हवा-ए-वक़्त ने झोंकी है धूल आँखों में
हमारी आँख में लेकिन चमक बहुत है अभी

दिल अपना उन की हथेली पे रख भी दे 'अंजुम'
तिरे ख़ुलूस पे यारों को शक बहुत है अभी