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उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है | शाही शायरी
uTha leta hai apni eDiyan jab sath chalta hai

ग़ज़ल

उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है

तनवीर सिप्रा

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उठा लेता है अपनी एड़ियाँ जब साथ चलता है
वो बौना किस क़दर मेरे क़द-ओ-क़ामत से जलता है

कभी अपने वसाएल से न बढ़ कर ख़्वाहिशें पा लूँ
वो पौदा टूट जाता है जो ला-महदूद फलता है

मसाफ़त में नहीं हाजत उसे छितनार पेड़ों की
बयाबाँ की दहकती गोद में जो शख़्स पलता है

मैं अपने बचपने में छू न पाया जिन खिलौनों को
उन्ही के वास्ते अब मेरा बेटा भी मचलता है

मिरी मजबूरियाँ देखो उसे भी मो'तबर समझूँ
जो हर तक़रीर में अपना लब-ओ-लहजा बदलता है

बदन के साथ मेरी रूह भी 'सिपरा' कथक नाचे
ग़ज़ल साँचे में जब कोई नया मज़मून ढलता है