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उठा के दर से सर-ए-रह बिठा दिया है मुझे | शाही शायरी
uTha ke dar se sar-e-rah biTha diya hai mujhe

ग़ज़ल

उठा के दर से सर-ए-रह बिठा दिया है मुझे

मीर अहमद नवेद

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उठा के दर से सर-ए-रह बिठा दिया है मुझे
मिरे सवाल से पागल बना दिया है मुझे

कुछ इस तरह से कहा मुझ से बैठने के लिए
कि जैसे बज़्म से उस ने उठा दिया है मुझे

न ख़ुद ही चैन से बैठे न मुझ को बैठने दे
मिरे ख़ुदा ने सितारा भी क्या दिया है मुझे

मिरी समाई न सहरा में है न घर में है
नया ये मुज़्दा-ए-वहशत सुना दिया है मुझे

मैं अपने हिज्र में था मुब्तला अज़ल से मगर
तिरे विसाल ने मुझ से मिला दिया है मुझे