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उठ चुका दिल मिरा ज़माने से | शाही शायरी
uTh chuka dil mera zamane se

ग़ज़ल

उठ चुका दिल मिरा ज़माने से

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

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उठ चुका दिल मिरा ज़माने से
उड़ गया मुर्ग़ आशियाने से

देख कर दिल को मुड़ गई मिज़्गाँ
तीर ख़ाली पड़ा निशाने से

चश्म को नक़्श-ए-पा करूँ क्यूँकर
दूर हो ख़ाक आस्ताने से

हम ने पाया तो ये सनम पाया
इस ख़ुदाई के कार-ख़ाने से

तेरी ज़ंजीर-ए-ज़ुल्फ़ से निकले
ये तवक़्क़ो न थी दिवाने से

ऐ 'फ़ुग़ाँ' दर्द-ए-दिल सुनूँ कब तक
उड़ गई नींद इस फ़साने से