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उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है | शाही शायरी
usi yaqin usi dast-o-pa ki hajat hai

ग़ज़ल

उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है

यूसुफ़ तक़ी

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उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है
इमाम-ए-वक़्त को फिर कर्बला की हाजत है

कहीं न तुझ को तिरा शौक़ बे-लिबास करे
तिरे जुनूँ को जो मेरी क़बा की हाजत है

कहाँ से आए अबाबील अबरहा के लिए
तिरे बशर को तो माल-ओ-ग़िना की हाजत है

अजीब तर्ज़-ए-तकल्लुम है अहल-ए-मंसब का
बहुत दिनों से किसी ख़ुश-अदा की हाजत है

तमाम हर्ब-ओ-जदल आज़मा के हार गए
उठाओ दस्त-ए-दुआ अब दुआ की हाजत है