उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है
इमाम-ए-वक़्त को फिर कर्बला की हाजत है
कहीं न तुझ को तिरा शौक़ बे-लिबास करे
तिरे जुनूँ को जो मेरी क़बा की हाजत है
कहाँ से आए अबाबील अबरहा के लिए
तिरे बशर को तो माल-ओ-ग़िना की हाजत है
अजीब तर्ज़-ए-तकल्लुम है अहल-ए-मंसब का
बहुत दिनों से किसी ख़ुश-अदा की हाजत है
तमाम हर्ब-ओ-जदल आज़मा के हार गए
उठाओ दस्त-ए-दुआ अब दुआ की हाजत है
ग़ज़ल
उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है
यूसुफ़ तक़ी