उसी के क़दमों से एक चेहरा निकालना है
गिरे शजर से हवा का शजरा निकालना है
मैं देर से एक दर पे ख़ाली खड़ा हुआ हूँ
किसी की मसरूफ़ियत में वक़्फ़ा निकालना है
मुझे पहाड़ों को खोदते देख क्या रहे हो
कहीं पहुँचना नहीं है रस्ता निकालना है
बड़े-बड़ों से अकड़ के मिलता हूँ आज-कल मैं
मुझे ख़ुदाओं में एक बंदा निकालना है
बहुत दिनों से सुकून फैला है ज़िंदगी में
इसी तसल्ली में अब अचम्भा निकालना है

ग़ज़ल
उसी के क़दमों से एक चेहरा निकालना है
ओसामा ज़ाकिर