उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए
मिरी ज़िंदगी का मुतालिबा वही एक फ़र्द है किस लिए
तू जो शहर में ही मुक़ीम है तो मुसाफ़िरत की फ़ज़ा है क्यूँ
तिरा कारवाँ जो नहीं गया तो हवा में गर्द है किस लिए
न जमाल-ओ-हुस्न की बज़्म है न जुनून ओ इश्क़ का अज़्म है
सर-ए-दश्त रक़्स में हर घड़ी कोई बादगर्द है किस लिए
तिरे हुस्न से ये पता चला तुझे देख कर ये ख़बर हुई
जहाँ रास्ता ही नहीं कोई वहाँ रह-नवर्द है किस लिए
जो लिखा है मेरे नसीब में कहीं तू ने पढ़ तो नहीं लिया
तिरा हाथ सर्द है किस लिए तिरा रंग ज़र्द है किस लिए
वो जो तर्क-ए-रब्त का अहद था कहीं टूटने तो नहीं लगा
तिरे दिल के दर्द को देख कर मिरे दिल में दर्द है किस लिए
कोई वास्ता जो नहीं रहा तिरी आँख में ये नमी है क्यूँ
मिरे ग़म की आग को देख कर तिरी आह सर्द है किस लिए
ग़ज़ल
उसी एक फ़र्द के वास्ते मिरे दिल में दर्द है किस लिए
अदीम हाशमी