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उश्शाक़ का दिल दाग़ का अंदाज़ा हुआ महज़ | शाही शायरी
ushshaq ka dil dagh ka andaza hua mahz

ग़ज़ल

उश्शाक़ का दिल दाग़ का अंदाज़ा हुआ महज़

सिराज औरंगाबादी

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उश्शाक़ का दिल दाग़ का अंदाज़ा हुआ महज़
पेशानी-ए-दिलबर पे अजब ग़ाज़ा हुआ महज़

ऐ नूर-ए-नज़र मुंतज़िर-ए-वस्ल हूँ आ जा
दो पाट पलक के नहीं दरवाज़ा हुआ महज़

मख़मूर हूँ तुझ चश्म-ए-गुलाबी का पिला जाम
नर्गिस के प्याले सती ख़म्याज़ा हुआ महज़

लिखता है 'सिराज' उस गुल-ए-बे-ए-ख़ार की तारीफ़
दीवाँ कूँ रग-ए-गुल सती शीराज़ा हुआ महज़