उश्शाक़ का दिल दाग़ का अंदाज़ा हुआ महज़
पेशानी-ए-दिलबर पे अजब ग़ाज़ा हुआ महज़
ऐ नूर-ए-नज़र मुंतज़िर-ए-वस्ल हूँ आ जा
दो पाट पलक के नहीं दरवाज़ा हुआ महज़
मख़मूर हूँ तुझ चश्म-ए-गुलाबी का पिला जाम
नर्गिस के प्याले सती ख़म्याज़ा हुआ महज़
लिखता है 'सिराज' उस गुल-ए-बे-ए-ख़ार की तारीफ़
दीवाँ कूँ रग-ए-गुल सती शीराज़ा हुआ महज़
ग़ज़ल
उश्शाक़ का दिल दाग़ का अंदाज़ा हुआ महज़
सिराज औरंगाबादी