उसे यादों में जब लाना मुसलसल कर दिया मैं ने
उसे वो हिचकियाँ आईं कि पागल कर दिया मैं ने
किताबों में पढ़े जब एक-तरफ़ा प्यार के क़िस्से
ख़ुद अपना दिल तमन्नाओं का मक़्तल कर दिया मैं ने
कई ग़ज़लें पड़ी थीं ना-मुकम्मल एक अर्से से
उसे जब आज देखा तो मुकम्मल कर दिया मैं ने
जो साया हम-क़दम बन कर सफ़र में साथ रहता था
हमेशा के लिए ख़ुद से अलग कल कर दिया मैं ने
सुना तो ख़ैर से आया हूँ उस को दास्ताँ अपनी
मगर उन फूल सी आँखों को बोझल कर दिया मैं ने
तुम्हारे बाल मैं ने खोल कर मौसम बदल डाला
फ़ज़ा में दूर तक बादल ही बादल कर दिया मैं ने
धुआँ यादों का ही काफ़ी था दिल कमज़ोर करने को
जला कर राख कल बीड़ी का बंडल कर दिया मैं ने
ग़ज़ल
उसे यादों में जब लाना मुसलसल कर दिया मैं ने
अनुभव गुप्ता