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उसे देख कर अपना महबूब प्यारा बहुत याद आया | शाही शायरी
use dekh kar apna mahbub pyara bahut yaad aaya

ग़ज़ल

उसे देख कर अपना महबूब प्यारा बहुत याद आया

अब्दुल हमीद

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उसे देख कर अपना महबूब प्यारा बहुत याद आया
वो जुगनू था उस से हमें इक सितारा बहुत याद आया

यही शाम का वक़्त था घर से निकले कि याद आ गया था
बहुत दिन हुए आज वो सब दोबारा बहुत याद आया

सहर जब हुई तो बहुत ख़ामुशी थी ज़मीं शबनमी थी
कभी ख़ाक-ए-दिल में था कोई शरारा बहुत याद आया

बरसते थे बादल धुआँ फैलता था अजब चार जानिब
फ़ज़ा खिल उठी तो सरापा तुम्हारा बहुत याद आया

कभी उस के बारे में सोचा न था और सोचा तो देखो
समुंदर कोई बे-सदा बे-किनारा बहुत याद आया