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उसे भी हाथ मलते देखना है | शाही शायरी
use bhi hath malte dekhna hai

ग़ज़ल

उसे भी हाथ मलते देखना है

मुनव्वर अज़ीज़

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उसे भी हाथ मलते देखना है
ये मंज़र भी बदलते देखना है

चराग़-ए-दर्द ताक़-ए-जाँ पे रख कर
हवाओं को मचलते देखना है

ज़रा इक लम्स की हिद्दत अता हो
अगर पत्थर पिघलते देखना है

अभी आँखें बचा रक्खो कि हम को
सदी का ख़्वाब फलते देखना है

बड़ी मा'सूम ख़्वाहिश है 'मुनव्वर'
कभी सूरज निकलते देखना है