EN اردو
उस तरफ़ तू तिरी यकताई है | शाही शायरी
us taraf tu teri yaktai hai

ग़ज़ल

उस तरफ़ तू तिरी यकताई है

फ़रहत एहसास

;

उस तरफ़ तू तिरी यकताई है
इस तरफ़ मैं मिरी तन्हाई है

दो अलग लफ़्ज़ नहीं हिज्र ओ विसाल
एक में एक की गोयाई है

है निशाँ जंग से भाग आने का
घर मुझे बाइस-ए-रुस्वाई है

हब्स हैं मशरिक़ ओ मग़रिब दोनों
अब न पछवा है न पुरवाई है

घास की तरह पड़े हैं हम लोग
न बुलंदी है न गहराई है

जिस बयाबाँ में हूँ मैं आबला-पा
वो बयाबाँ मिरी सच्चाई है

उस की बातों पे ख़फ़ा मत होना
'फ़रहत' एहसास तो सौदाई है