उस से तस्लीम बस यूँही सी है
बर्फ़ एहसास की जमी सी है
चलिए अहबाब को तो जान गए
ये मुसीबत तो आरज़ी सी है
कुछ तो चारागरी करे कोई
आज कुछ दर्द में कमी सी है
आज चुपके से किस की याद आई
दिल के आँगन में चाँदनी सी है
किस ने तर्क-ए-वफ़ा किया पहले
ये शिकायत भी बाहमी सी है
हसरतो अब तो हो चलो ख़ामोश
नब्ज़ बीमार की थमी सी है
उम्र गुज़री जिसे बयाँ करते
वो कथा अब भी अन-कही सी है
ग़ज़ल
उस से तस्लीम बस यूँही सी है
इरफ़ान वहीद