उस से पहचान हो गई होगी
राह आसान हो गई होगी
जीने मरने का एक ही सामान
उस की मुस्कान हो गई होगी
मोआ'मला दिल का जब खुला होगा
अक़्ल हैरान हो गई होगी
लोग फिरते हैं मारे मारे क्यूँ
बंद दूकान हो गई होगी
जिस ने बतलाया बे-लिबास उसे
आफ़त-ए-जान हो गई होगी
चालिए फिर राह देख लेते हैं
राह सुनसान हो गई होगी

ग़ज़ल
उस से पहचान हो गई होगी
हबीब कैफ़ी