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उस ने किया हिजाब मिरे देखने के बा'द | शाही शायरी
usne kiya hijab mere dekhne ke baad

ग़ज़ल

उस ने किया हिजाब मिरे देखने के बा'द

फख़्र अब्बास

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उस ने किया हिजाब मिरे देखने के बा'द
उस को मिला सवाब मिरे देखने के बा'द

सूरत पे चार-चाँद लगे थे जनाब की
ये भी था इंक़लाब मिरे देखने के बा'द

मेरी नज़र से डालियाँ छू कर हरी हुईं
खिलने लगे गुलाब मिरे देखने के बा'द

इतना मैं शे'र-फ़हम नहीं हूँ मगर यहाँ
छपते हैं इंतिख़ाब मिरे देखने के बा'द

खुलता ही जा रहा है किसी रुख़ के रू-ब-रू
शर्म-ओ-हया का बाब मिरे देखने के बा'द

पहले नज़र उठा के मुझे देखते भी थे
लेकिन ये इज्तिनाब मिरे देखने के बा'द

मेरी नज़र में दोस्तो शिद्दत बला की थी
टूटा पड़ा था ख़्वाब मिरे देखने के बा'द