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उस ने कल भागते लम्हों को पकड़ रक्खा था | शाही शायरी
usne kal bhagte lamhon ko pakaD rakkha tha

ग़ज़ल

उस ने कल भागते लम्हों को पकड़ रक्खा था

अबरार आज़मी

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उस ने कल भागते लम्हों को पकड़ रक्खा था
बात दीवाने की लगती है सितमगर जैसी

जिस्म था उस का बस इक जिस्म कोई बात न थी
हाँ निगाहों में कोई चीज़ थी तेवर जैसी

क्या कहा तू मिरा साया है यक़ीं मुझ को नहीं
शक्ल तो कुछ नज़र आती है पयम्बर जैसी

मैं ने कल तोड़ा इक आईना तो महसूस हुआ
इस में पोशीदा कोई चीज़ थी जौहर जैसी